Navneet Gupta

Others

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Navneet Gupta

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डेज़ी

डेज़ी

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नाम है उस काल्पनिक कुडी का जिसने सोचें तो क्या पाया, क्या खोया 

शादी की उम्र आयी तो कुछ महत्वाकांक्षा ने कुछ आर्थिक हालत ने और कुछ वज़नी शरीर ने लटकाये रखा।

शायद एक कहावत होती है, तोकू और ना मौक़ू ठौर 

और एक दि आख़िरकार दुल्हन बन जाती है।

उस तरफ़ भी मोटू राम बिगड़े नवाब लेकिन पारिवारिक आर्थिक हालत मज़बूत । डीलडाल और जेब से ही मज़बूत नहीं वरन लाग लपेट और रसूख़ में भी कम नहीं। शहर के कमाऊ डाक्टर ससुर के रूप में और अपने जैसी सास।

पति अकेला लडकाऔर शादी न होने से उम्र दराज हो चला था ही।

बस इस मेल संयोग को एक मुक़ाम मिला , उसका सुस्त सा चल रहा जीवन कुछ यौवन उन्मुख और आनन्द के साथ गुजरने के बीच चलने लगा। कुछ अच्छा सा । कुछ अच्छा सा भी नहीं। हम बाहर वालों के लिये तो क्या कहैं, उमर के कारण या मोटापे के चलते उतने समय में परिवार बढ़ोतरी नहीं ही हुई और उससे पहिले कुछ ख़राब सा ग्रह आ गया। ढर्रा फिर पटरी सेउतरता दीखने लगा।

बस एक संतोषजनक बात ये थी कि मजबूत कमर के रूप में सास और ससुर थे , उनका भी कोई और सीधे सामने नहीं था।

पति के जवानी के शौक़ों ने शरीर कुछ और ही गर्भ धारित बीमार सिर उठाने लगीं और थोड़े ही दिनों में पूरे प्रयासों के बाद भी , जब कि डाक्टर परिवार था , पति को बचाया नहीं जा सका।

वो एक दम धरातल पर आन गिरी , छोटे से काल का वैवाहिक समय, कोई सन्तान नहीं जिससे भविष्य की कुछ गाँठ खुलती ।


शायद समय के आलाप ने एक बार फिर तोकू और ना मौकू ठौर काम कियासमझदारी भी शायद यही थी

विकल्प ज़्यादा थे भी नही।

“ एक उसके कि ससुर सास बेटी मानकर उसके हाथ पीले करते”

लेकिन नहीं ये ही ठीक हुआ होगा समझ कर वो सब एक छत के नीचे ही रहें तीनों के तीनों -कुछ, अपने बेटे की हमसाया हमसफ़र हमबिस्तर रही उसके साथ और कोई, उसके पति के प्रथम रिश्तेदार के नाते।

गणित बीजगणित अनुबंध सब इसके क़ायल हुए। उसे एक काम उसकी शिक्षकों अनुरूप मिला , रसूखदार होने के नाते।

अब आज वो परिवार की अगली पीढ़ी के मानिंद अपने पति के , ये कहने से बैहतर अपने सास ससुर के साथ समझदारी के साथ सुरक्षित जी रही है। स्वावलंबन है, ससुराल परिवार है छोटा ही सही, धरोहर है। आगे जब कोई रास्ता कुछ स्पेस बनायेगा तब का तब देखा जायगा।लेकिन आज की समझदारी यही है।


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