ज़िंदगी
ज़िंदगी


ज़िंदगी मैं तुम्हे जीना चाहता हूँ
पर खुश रह कर
ज़िंदगी मैं तुम्हे समझना चाहता हूँ
तेरे हर एक पल को मैं
खुशी से अपने किताब के पन्नों से जोड़ना चाहता हूँ
क्योंकि ज़िंदगी मैं तुम्हे जीना चाहता हूँ
पर खुश रह कर...
लोग कहते है ज़िंदगी जीना आज आसान नही
हर चेहरे पर एक नकाब है
यहां पर सबकी नीयत कुछ न कुछ खराब है
इस अनसुलझी पहेली को कुछ सुलझाना
चाहता हूँ क्योंकि
ज़िंदगी मैं तुम्हे जीना चाहता हूँ
पर खुश रह कर...
ज़िंदगी तेरी चाहत और मिन्नते
बहुत बड़ी और महंगी लगती है
थक हार - सा गया हूँ चलते - चलते
सुबह से शाम हो गयी और शाम से रात
दिन, महीने, साल गुज़रते चले गए
अब
उम्मीदें धूमिल नज़र आने लगी
कदम भी अब लड़खड़ाने लगे हैं
फुर्सत मिली नही है पर...ज़िंदगी
कुछ बात करनी तुमसे अकेले में
एक सरल रास्ता निकालना है
हमारे और तुम्हारे बीच का क्योंकि
ज़िंदगी तुम्हे मैं जीना चाहते हूँ
पर खुश रह कर...
खुश रह कर तुम्हे जीने की आस में
उम्र के आखिरी दौर में पड़ा हूँ
अब तो ज़िंदगी अपना राज़ बताओ
बड़ी फुर्सत से कुछ पल मिला
खटिये पर पड़े इसे ही खुशनुमा बना लूंं
क्योंकि अब भी दिए तेरे कुछ गम बचे हैं
सोचता हूँ अब तेरे साथ बैठ के बांंट लूंं
सच में ज़िंदगी !
मैं तुम्हे जीना चाहता हूँ
पर खुश रह कर...।