देखी मैंने एक खामोशी...
देखी मैंने एक खामोशी...
सुना करता था लोगों से...
खामोशियों की अपनी ज़ुबान होती
कहती कुछ नहीं पर बहुत कुछ बोल जाती है
पर देखी मैंने एक खामोशी...
जो खामोश लगी...
ऐसी खामोशी जो डरी-सहमी
मदद की आस देख रही हो
पर कुछ कह नहीं पा रही हो
देखी मैंने एक खामोशी...
जो खामोशी लगी...
ये खामोशी दिल नहीं रूह को दहला रही थी
ऐसा लग रहा था कि अब ये खामोशी दम तोड़ रही है
ओर मैं देख रहा था...
पर उस खामोशी की मदद कौन करे
किसको पता उसका दर्द क्या है
कुछ कहता उस खामोशी को मैं...
की उस खामोशी ने दम तोड़ दिया
वो खामोशी हमेशा के लिए खामोश हो गयी
उस खामोशी की दर्द भरी नज़रे
आज भी मुझे सोने नहीं देती
जैसे वो मुझे कुछ कहना चाह रही हो
देखी मैंने एक खामोशी...
जो खामोश लगी...
