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Rekha Bora

Tragedy

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Rekha Bora

Tragedy

ज़िंदगी

ज़िंदगी

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चाहती हूँ

ज़माने के सारे

बंधन तोड़ कर ,

तुम तक पहुंच जाऊँ !


पर भय लगता है

ये सोचकर ,

कहीं तुम क़ैद हुए,

रीति रिवाज़ों की

उन हदों मैं,

जिन्हें शायद

मैं न तोड़ पाऊँ !


फिर से ये

अकेलापन,

मेरे वज़ूद का

हिस्सा न बन जाए,

पर इससे घबराना कैसा,


अपने सीने के

तूफ़ान को छुपाकर,

कशमकश के

दायरे में क़ैद होकर,


फिर से

जियेंगे उस मौत को,

जिसे लोग ज़िंदगी कहते हैं !


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