यह आह्वान कैसा
यह आह्वान कैसा
समझा लिया था मैंने
अपने मन को,
यादें भुला दीं थी
अपने में खोई थी।
फिर यह तुम्हारा
आह्वान कैसा ,
यह मेरे बारे में
पूछना कैसा ?
क्यों न रहने देते हो
मुझे एकाकी ,
क्यों मेरी यादों को
कुरेदते हो ?
क्यों नहीं भूल जाने देते
शुरू करूँ सब कुछ नए सिरे से ,
बीती बातें भुला दूँ
जो कुछ आये उसे गले लगा लूँ।
न कोई उलाहना
न बीती बातें ,
ज़िंदगी एक सी,
बही जा रही है ।