ये कैसा हल ?
ये कैसा हल ?
इक्कीस गणतंत्र ने नंगी आँखों से
नंगा नाच देखा खून भरे दृगों से
संविधान की होलिका जली
कृषक बने दंगाई ट्रैक्टर के बल से।
खेत पुछ रहे किसान से
तुम जोतते थे मुझे हल से
उगलती थी सोना ,भरती थी पेट
क्यों डर गए मामूली बिल से।
भोले भाले तुम कैसे बदल गए
भारत के भाल के धब्बा बन गए
लाल क़िले के प्राचीर को शर्मसार
और देश का चेहरा काला कर दिए।
अन्नदाता का नाम बदनाम किया
पोषक से भक्षक का रूप लिया
हथियार तेरा हल है कटार नहीं
फिर क्यों ?
जय किसान का नारा बदनाम किया।