ये कैसा दीवानापन है
ये कैसा दीवानापन है
तूने दिल्लगी की
मैंने कब इंकार किया है
ख्याल अब किसी गैर का आता नहीं
दिल चुराकर बेदिल किया किसी को
ये कैसा दीवानापन है
सखियों संग लौटूं जब हर शाम
गागर लेकर पनघट से
कदम की डाल बैठ जाने कितनी
मटकियाँ फोड़ी हैं कंकड़ मारकर
ये कैसा दीवानापन है
तेरी याद में जब नींद नहीं आती
करवटों को सुलाकर चाँद को निहारूं
ख्यालों की सलवटों में छिप कर
चुपके से मेरे लबों को भिगो जाता है
ये कैसा दीवानापन है
हाल कुछ ऐसा हो गया है इधर
जिंदगी के हर मोड़ पर
सामने खड़ा नज़र आता है
रास्ता रोक कर तेरी मुस्कुराती तस्वीर
ये कैसा दीवानापन है
सोचती हूँ कभी-कभी
किस गुनाह की सजा मैंने है पायी
दिल की खिड़की पर देकर दस्तक
हसीं ख़्वाबों को जगा जाता है
ये कैसा दीवानापन है
बेइंतहा मोहब्बत है अगर मुझसे
सजाकर ला बारात अपनी
दुल्हन को ले जा डोली में बैठाकर