ये जो काला तिल है
ये जो काला तिल है
ये जो काला तिल है, चेहरे पे तुम्हारी,
चुपके से ले लेगी जान किसी दिन हमारी।।
मत मुसकाओ तुम, अनजान की तरह
तेरी मासूम सी अदा भी दुश्मन है हमारी।।
चाँद को क्या पता दाग जो दामन पे उसके
कैसे पिरो देता हर लफ़्ज़ों में शायरी।।
ना हटने की हठ पे नज़र अटका हुआ
जैसे पहली प्यार की अनछुई ख़ुमारी।।
गुज़ारिश करने की ज़ुर्रत कर भी न सकता
रूठ गयी तो टूट जाए सांसें जो है हमारी।
मनाने की हक़ पे यकीन कर भी लेता
मगर खुद की नीयत पे शक है हमारी
बेकाबू जज्बातों को मनाऊंगा कैसे
सबर खो चुके है ये कहाँ सुनेंगे हमारी।।
ये जो काला तिल है चेहरे पे तुम्हारी
जी जलाते हैं ज़ालिम कातिलाना भारी।।

