ये दिल....
ये दिल....
वो आज भी तैयार होकर कुछ यूं आते हैं
हर जख्मी दिल के सारे टांके टूट जाते हैं
कि शिकायत करे भी, तो क्या करे उनसे
की, शिकायत करे भी तो क्या करे उनसे
झांकते हैं, घर की खिड़की से हम उनको
और लबों से सारे लफ्ज़ ही भूल जाते हैं।

