STORYMIRROR

Chandan Kumar

Tragedy

4  

Chandan Kumar

Tragedy

ये चांद बड़ा कि ये जमीं बड़ी

ये चांद बड़ा कि ये जमीं बड़ी

1 min
459


चंद लोग भरते हैं आकाश में उड़ान,

चंद लोग जमीं को ही बनाते हैं चांद,

चंद लोग ख़रीद रहे हैं चांद पे जमीं,

शेष लोग बसा रहे हैं जमीं पे ही चांद !


ये चांद भी खिलौना हो गया हैं,

अमीरी का बिछौना हो गया हैं,

ग़रीबी तो मुस्कुरा रही हैं,

जमीं पे ही चांद को बुला रही हैं !


ये चांद बड़ा कि

ये जमीं बड़ी

अमीरों के लिए

यहीं मुसीबत खड़ी


मेरे तो खेतों में खुशियां उगती हैं,

मिट्टी में मेहनत का रंग दिखती हैं,

खेतों में लहलहाते फसल ही चांद हैं,

मिट्टी में करें मेहनत ही असल मुस्कान हैं !


किसी को सच लगे

लगे किसी को झूठ

मुझे तो यहीं सच लगता हैं,

ग़रीबी का रिश्ता जमीं से हैं अटूट !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy