ये बेपरवाह दिल
ये बेपरवाह दिल
ये बेपरवाह दिल
नजाने कहा भागता है
किस चिज के लिए
रात रात जागता है
कभी भवरा बनके
फूलोपे मंढराता है
कभी दूर पर्वत को
अपनी बातोसे डराता है
ये बेपरवाह दिल कभी
हसता है खिलखिलाकर
प्यार के रंग भर देता है
चाशनी का घोल मिलाकर
कभी बंद लिफाफा बनके
छिपाता है कितने राज
दिलपर बित जाए तो
जंग का कर देता है आगाज
ये बेपरवाह दिल कितना
समाता है तेरे हाथ में
खट्टी-मीठी यादों के साथ
जम जाता है अपने आप में।
