ये बेड़ियां
ये बेड़ियां
ये बेड़ियां हाथों में हाथ दब गए होंगे,
अभी उम्र क्या थी ख़्वाब भी दब गए होंगे !
ये मैखाना दो बाई चार का था जो बना,
सिमटा तेरा बदन और जख्म जम गए होंगे !
पढ़ना था शब्द चार जब स्कूल में तुझको,
यूँ पथ पे बढ़ना था फ़ौलाद-सा तुझको !
तेरे क़दमों को भी रोक दिया बीच भंवर में,
बाजार में परोसा था सामान-सा तुझको !
अब फंस गई तू इस क़दर की निकल ना पाई,
बाली सी उम्र में ये कैसी घड़ी अाई !
ये घाव से भरा जो जिस्म जंगल में मिला,
चंद आँसू बह गए और सुर्ख़ियां निकल आईं !
कुछ शोर था मचा और अदालतें थी सजी,
मुक़दमा भी था चला और तारीखें थी बढ़ी !
उस कानून की भी आँखें पहले से बंद हैं,
उसको जख्म ना दिखे मैं फ़ाइलों में थी दबी !