इश्क़ पे
इश्क़ पे
कत्थई आंखों से सब जज़्बात लिखे गए थे
सुनाए कुछ गए थे और लिखाए कुछ गए थे।
जिसे ढूंढ़ते रहे हर तरफ़ हम मयखाने में
बाद वही दीवारों पर सजाए कुछ गए थे।
तो इकतरफा इश्क़ भी क़ुबूल मालूम पड़ा
जब ये शर्बत लबों के पिलाए कुछ गए थे।
लाए तश्तरी में सजा के परोस दिया सब
कमाल होंठो का था हमें बताए कुछ गए थे।
और अबके शाम जन्नत की कुछ ऐसे ढली
निकले साथ घर से वहाँ ठहराए कुछ गए थे।
