होली में सिंदूरी रंग खो दिया
होली में सिंदूरी रंग खो दिया
अबके मौसम में कुछ अलग ही निखर रही है,
ये वही है क्या जो घर से यूँ ही निकल रही है !
ज़माने से एक रंग चुनकर सब बिखेर दिए हैं,
बाद तन सारी रेशम की वो सफ़ेद लग रही है !
बातें हर तरफ यहीं हैं कि उसका बदन भीगा है,
छलकते आँसू हैं सब और डर फगुनाहट रही है !
जाते जाते बस मोहब्बत ही कह पाए उन्हें हम,
फीके थे सारे अबीर बस यही शिकायत रही है !
और खड़े थे देहरी पर मानों ये सब ख़्वाब हो,
पर जाने क्यूँ महफ़िल उन्हें शहीद कह रही है !!