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Dayasagar Dharua

Classics

4.8  

Dayasagar Dharua

Classics

यादों की ग़ोताख़ोरी

यादों की ग़ोताख़ोरी

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आज मैने

पुरानी एलबम को छाना

जैसे कोई गोताखोर

समन्दर की तलहटी में

छानता रहता है

मोतीयों को पाने की आस में

जहाँ मुझे मेरी

पुरानी यादों वाली

अनमोल मोतीयाँ मिली

जो वापस बचपन की ओर ले चली


बाबा की मार से बचने

माँ की छाँव

और माँ से बचने

बाबा के छाँव का सहारा लेना

मास्टर जी की पिटाई से बचने

बूढे दादा जी के साथ

खेतों में भागे चला जाना

वहीं बैलों को बेवजह पिटना

फसलों को छेड़ना

तितलीयों के रंगों से हाथ रंगना

व्याध-पतंगों को धागों से बाँध कर

तालाब के मेंढ़कों को चारा देना

पकड़ में आ जायें

तो तंग करने लग जाना


वहीं तालाब में नहाना

और वहीं पे

दादा और दादी के साथ

खाना खाना

दिन भर मटरगस्ती करने के बाद

शाम को थकान के साथ

बैलगाड़ी में घर लौटना

घर आते ही दादी के गोद में

बैठकर कहानी सुनना

और सुनते सुनते सो जाना


वो सारे पलों को जैसे

मैंने आज वापस जी ली


पुरानी यादों वाली

अनमोल मोतीयाँ आज मिली।


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