यादें
यादें
कभी तुम्हारी याद चेहरे पे
मुस्कान बन के आती है
तो कभी सुर्ख़ आँखों से
आँसू बन के झलकती हैं
तुम्हें इनकी चमक या नमी
महसूस तो होती होगी...
कभी तुम्हारी याद ज़ेहन में
ख़ुशी बन के उमड़ने लगती है
तो कभी रंजीदगी से
ग़म बन के मायूस करती है
तुम्हें इनकी गूँज या चुप्पी
महसूस तो होती होगी...
कभी तुम्हारी याद रात में
निंदिया बन के सपने दिखलाती है
तो कभी सारी रात
नासूर बन के जगाती रहती है
तब तुम्हें सुकून या चुभन
महसूस तो होती होगी...
कभी तुम्हारी याद बदन को
खुशबू बन के महकाती है
तो कभी हवास पे
नशा बन के छानें लगती है
तब तुम्हें तरंग या घुटन
महसूस तो होती होगी...
कभी तुम्हारी याद ज़िद को
गुरूर बन के सहलाती है
तो कभी दिल पे
दर्द बन के वार करती है
तुम्हें इनकी तड़प या आह
महसूस तो होती होगी...
कभी तुम्हारी याद संजीदगी में
जिंदगी बन के धड़कने लगती है
तो कभी मर जाने की
वज़ह लगने लगती है
तुम्हें ये चलती-रुकती साँसें
कभी महसूस तो होती होगी...
कभी तुम्हारी तनहाइयों में
आ के दस्तक देती होगी
तो कभी हिचकियों से
गुफ़्तगू कर लेती होगी
तुम्हें मेरी यादें चुपके से
कभी तो यूँ सताती ही होगी...