याद है मुझे..
याद है मुझे..
याद है मुझे
जब तुमने मेरी भवनाओं
मेरे प्यार
और मेरे विश्वास से खेला था खिलौने की तरह
अपने उन्माद में...
अब तुम्हारी झूठी साहानुभूति
कटिले व्यंग्य
दर्दनाक मज़ाक
नहीं करती उद्वेलित मुझे
पर ..
मैं पत्थर नहीं बन गई
आँखें मेरी अब भी
करती रहती हैं शून्य से बातें..!!