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Arunima Bahadur

Tragedy

4  

Arunima Bahadur

Tragedy

व्यथा

व्यथा

1 min
235


कभी रोती हूँ,

कभी सोचती हूँ,

क्या रह गया प्रेम का स्वरूप,

क्या हो गया दोस्ती का रूप,

क्या है मायने नारी से दोस्ती के,


केवल देह ही पा लेना,

भूल जाना दोस्ती का पावन नाता,

बस वासना ही पा लेना,

पर न मिलती वो दोस्ती कभी,

जो दिल से निभती हैं,

टूट कर हर नारी बस 


मन ही मन सिसकती हैं,

सोचती है कहाँ है वो प्यार,

जो निर्मल मन बनाता है,

जहाँ सम्मान होता हैं 

एक नारी का,

पर खो गया हैं वह प्रेम कही,


बस अधूरी सी कहानी रह गयी हैं,

होठो में मुस्कान

और नैनो में नीर सी हो गयी हैं,

बस वही वासना,वही अभिलाषा,

बस अपना बना लेने की चाह रहा गयी हैं,

पर टूट जाती हैं नारी,


बिखर जाती हैं हर बार,

जब जब लिखी जाती हैं ये कहानी।


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