कशिश
कशिश
आज समां का हर रंग बदला बदला सा क्यों है
फ़िज़ाओं में हवा का रुख़ बदला बदला सा क्यों है
हुए रिश्ते पराए,अपनापन बदला बदला सा क्यों है ?
कल तक किए थे जिसने साथ निभाने के वादे,
साथ जीने के और साथ मरने के वादे,
चाँदनी रात में ली थी अनजान पलों में कसमें,
पिघल गए आज वो सब ओस की बूंदों की तरह ,
उजड़ा है चमन, नज़ारा वीरान सा क्यों है
आज समा का रंग बदला बदला सा क्यों है?
की थी क़ुबूल हमने दिखाई आपकी वह बेरुख़ी ,
न पाया कभी करार ,नज़र आपने जो फेर ली ,
किया इंतज़ार केवल रुख के बदलने का हमने,
आपकी निगाहें फिर भी हुईं ख़फ़ा क्यों हम से ?
गुनाह था क्या हमारा ,कहिए बेज़ार सा क्यों है ?
आज समां का हर रंग बदला बदला सा क्यों है?
मचले है साँस आज समंदर के लहरों जैसे,
गुमसुम है चाँद ,हो छटपटा रही हवा जैसे,
रुक गई है नजर ,मदहोशी में हो डूबी जैसे ,
जी रहे हैं हम ,बेजान सी लाश हो जैसे ,
क्यों दी ये सज़ा ,मन तार तार सा क्यों है ?
आज समां का हर रंग बदला बदला सा क्यों है?
कभी न की कोई रस्म इबादतगाह में जाकर
झुका न सर यह कभी ,किसी सजदे में ही जाकर,
माना तुझे मेहरबान ,खो गए तुझमें ही सितमगर,
जिसे हीरा समझ पूजा ,पाया उसे तो बस पत्थर,
खता तेरी नहीं माना, रोएँ जार जार सा क्यों हैं ?
आज समां का हर रंग बदला बदला सा क्यों है ?
