कशिश
कशिश
उन्हें शिकायत है हमसे, हमें रिश्ता निभाना नहीं आता
हमें तो ये लगता है कि, हमें गम छुपाना ही नहीं आता
बहुत कर चुके कोशिश सितमगर ,तुम्हें भुला देने की हम !
पर उस दिल का क्या करें ,जिसे तुम्हें भुलाना भी नहीं आता !
सीने से लगा रखा है ज़ालिम , तेरी हर चाहत को हमने !
क्या करे अब और करम हम, इस दिल को मनाना भी नहीं आता !
होश में कैसे रहें बता , देख तेरी तस्वीर को हम !
क्या सज़ा दे उन जामों को अब, जिन्हें बहकाना भी नहीं आता!
अब तो है एक ही ख्वाहिश ,दीदार पे तेरे जां निकले!
बेसाख़्ता है इतने मजबूर हम , दर्दो ग़म छुपाना भी नहीं आता
उन्हें शिकायत है हमसे , हमें रिश्ता निभाना नहीं आता..........
