नव ताल
नव ताल
ऋतु परिवर्तन की पुकार पर
ओढ़ धरती ने चोला नया
खिला दिए गुल गुलज़ार सब
लेकर भँवरों का हिंडोला !
लदे अमराई से घने वृक्ष
हरे पात और कोमल पल्लव
गुंजरित कलियाँ करें भौंरे
भर भर ले आनंद मकरंद !
सूर्य किरण बनी अग्निशिखा
जगी हर ओर है ऐसी उमस ,
गर्म हवा से दहके तन मन
हुए बदहवास पृथ्वी अम्बर !
शाम आई बादल आए ,
रंग छा गया ऐसा चंपई
कालिमा नभ में यूँ बिखेर
किया धूम को तुषार मंडित !
माणिक बन गए धूलि कण
घुमड़ घुमड़ कर आए बादल
लेकर बूँदों का अमृत कलश
बिखरा गए मोती कण कण
तृषा हर दिशा की तृप्त हुई
खिली नव यौवना बन धरा ,
हर कोने में मधुमय सुश्री ,
निर्मल नीर बन बरस गई !!
पुलकित धरा स्वच्छंद पवन
बिखरी मधुर सौरभ चहूँ ओर
नाचे मन ताल गूंजे मयूर बन
कुसुमित भूमि सुंदर स्वर्ग सम!!!!
