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Dr Padmavathi Pandyaram

Abstract

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Dr Padmavathi Pandyaram

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खुद्दारी

खुद्दारी

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जगी इतनी बस ख़ुद्दारी कि ,

हमने माँगना ही छोड़ दिया । 

जानकर तुझे ए संगदिल,

सामने तेरे ,रोना ही छोड़ दिया !

कुछ तो होगा स्वार्थ उसका, 

जो सताता है इतना हमें,

दिखा बढ्प्पन हमने भी आज , 

माफ कर उसे ,छोड़ ही दिया!

था हाथ सर पर उसका नसीब , 

मुसीबत के हर एक मंजर पर ,

टूटी आज सब आस हमारी, 

उसी रहबर की चौखट पर,

आलम है कि पी रहे हैं अब ,

ग़मों दर्दों के घूँट हंस हंसकर , 

अब तो दुनिया को भी है शिकायत

क्यों हमने रोना ही छोड़ दिया ! 

कर ले सितम ए भाग्य , 

जितना भी तू ज़ोर लगाकर,

बिखरेंगे नहीं ,ली है कसम ,

किसी भी अब मुसीबत पर, 

हो जाएगी हर राह रोशन ,

गर हो हमारे हौसलों मे दम,

टूटे साहिल भी पा लेंगे किनारा कभी न कभी ,

सोच  यह आज हमने,सोग मनाना ही छोड दिया!




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