STORYMIRROR

Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract Tragedy Inspirational

4  

Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract Tragedy Inspirational

कह रहा है कोरोना

कह रहा है कोरोना

2 mins
453

मैं गया नहीं था छुप कर देख रहा था

सोचा था तुम कुछ थम जाओगे

मैं जाते जाते यूँ ही रुक गया था

यह देखने तुम सुधर गए होंगे


पर तुम न समझे, न सुधरे

धरती चीखी, चारों और था हाहाकार

पर तुम ने न कुछ देखा, न कुछ सुना

ना ही बदला तुमने अपना व्यवहार


मुझे फिर से तुमने बुला लिया

मेरे विकराल रूप को न कोसो

मानवता से तुम फिर खेल गए

मेरा क्या दोष, ज़रा मुझे बताओ


आचरण, सभ्यता, प्यार, रहमत, 

यह सब तुम फिर से भूल गए

मैं पैगाम देकर जाने ही वाला था

पर तुम कुछ समझ ही न पाए


तेरी ज़िन्दगी है आज डरी डरी

रंगत है सबकी उड़ी उड़ी

चाल भी तेरी आज मरी-मरी

सबकी सांसे है ठंडी-ठंडी


सुन लो ध्यान से मेरी यह बात

फिर वही धूप होगी खिलखिलाती

टल जाएगी यह लम्बी काली रात

माहौल में खुशियां फिर डलेंगी


पर पहले अपनी आदतें बदलो

सुधरो, सुधारो, है यह वक्त सही

मुझसे मत उलझो, एहतियात बरतो

भूल से भी अब न करो मनमानी


चिंगारी जब आग है बन जाती

लपटें दिखती है चारों और

हवाएँ गर उसका साथ निभाये

बदल जाते हैं धरती के छोर


हवाएँ अपना रुख बदलेंगी

माहौल को ज़रा संभलने दो

लपटें आग की थम जाएंगी

आक्रोश प्रकृति का कम होने दो


मैं चला जाऊंगा थोड़ा रुको

थका हुआ हूँ,  थोड़ा दम लेने दो

बहुत रुलाया है तुमने धरती को

आंसू उसके भी ज़रा थमने दो


जीव-जंतु जो थे सहमे-सहमे

उनपर अपनी रहमत बरसाऊं

सृष्टि को संतुलित करने के वास्ते

उनका बसेरा उन्हें वापिस लौटा दूँ


अबके मत भूलना तुम मानवता

मत खेलना फिर से सृष्टि के साथ

एक बार ज़रा अपने मन को  टटोलो

सोचो क्यों आयी यह काली रात


अब कुछ देर पैरों को लगाम दो

थोड़ा मंथन , थोड़ा विश्राम करो

संतुलित होने दो दूषित हवा को 

ज़रा सम्हलने दो स्थिति को


मौत का तांडव मुझे अब भाता नहीं

तुम सावधान रहो, यह दोहन रुक जाएगा

गुरूर, लालसा, नफरत को गाड़ दो

कोरोना दानव भी झुक जाएगा


अबके जो जाऊं, मुझे भूलना नहीं

मेरे आक्रोश को फिर से बढ़ाना नहीं

दुखी हूं मैं भी तेरे हालातों से

मैं जाना चाहता हूँ, संभालो अपनी धरती.....


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract