व्यथा-कथा...
व्यथा-कथा...
व्यथा-कथा क्या कहें...!!!
हमारे विवेकानंद केंद्र, खटखटी के परिसर में
सदैव विचरण करनेवाला
सबका प्रिय "बोगा" (नामक सांड)
जिसे किसी पापी ने न जाने
१० जून, २०२५ को
कहां छीनकर ले गया था
और बड़ी निर्दयता से
बिना खिलाए-पिलाए ही
उसे
किसी अनजान जगह पर
शायद किसी खूंटे से
बांध कर रख दिया था...
(अफसोस सिर्फ इस बात का रहेगा
कि लाख खोजबीन के बाद भी
हम लोग उसे कहीं ढूंढ न पाए...!)
यही हम सबका दुर्भाग्य है...!!
मगर "देवाधिदेव महादेव" जी की कृपा से
'वो' अचानक जब लंबी रस्सी के साथ ही
२७ जून, २०२५ की शाम
पुनः केंद्र परिसर में
(बड़ी दयनीय स्थिति में) पहुंचा,
तो हम सबका खुशी का ठिकाना न रहा...
कष्ट भी बहुत हुआ उसकी हालत देखकर!
पूरे १७ दिन बाद हम सबको
उसका चेहरा देखने को
नसीब हुआ...!
मगर बड़ी दुःख के साथ कहना पड़ रहा है
कि २९ जून, २०२५ को
हम सबका चहेता "बोगा"
पृथ्वीलोक से हमेशा के लिए
विदा लेकर
'स्वर्ग गामी' हो गया...!!!
हम सबको रुलाते हुए
"बोगा"
इस "केंद्र" परिसर में
अपनी अमिट छाप छोड़ गया...!
मगर एक व्यथा-कथा
अपने सीने में दबाकर ही
चला गया...
किसी को पता नहीं चल पाया
कि 'वो' पापी कौन था,
जिसने इस शांत स्वभाव वाले
एक सशक्त सांड को
इतनी दर्दनाक मौत दे गया???
अत्यंत दुःख के सहित कहते हैं
कि
जैसा हमारे "प्यारे" बोगा के साथ हुआ,
ठीक वैसा ही दर्दनाक 'अंत'
उस निर्दय पापी का भी हो --
जिसने उसके साथ
ऐसा 'अन्याय' किया...!!!
अब तो बस
"देवाधिदेव महादेव" जी से
अश्रुसिक्त नयनों से
ये
याचना करते हैं...
ये गुहार लगाते हैं
कि वे ही
उचित फैसला करें...!!!
"बोगा" हमें माफ कर देना !!!
हम तुम्हें समय रहते
ढूंढ न पाए...!!!
तुम उस स्वर्गधाम में
'चिर-शांति' से रहना...
ओम शांति... शांति...शांति...!!!
