विद्रोही मन...
विद्रोही मन...
जब ईमानदारी की रोटी कमाते हुए
इस संसार रूपी जंजाल में
बनावटी तकलीफें दिन-ब-दिन
बढ़ने लगतीं हैं,
तो मन मेरा
रफ्ता-रफ्ता विद्रोही हो उठता है...
और आवाज़ देता है, "अब बस भी करो
ये ज़ुल्म-ओ-सितम...!!!"
