स्वयं पिता बनकर...
स्वयं पिता बनकर...
इस संसार में हरेक पिता चाहे वो किसी भी
कार्यक्षेत्र से संबंध रखता हो या समाज में किसी भी
पद पर आसीन हो, स्वयं पिता बनकर ही
मुझे ये एहसास हुआ कि
एक पिता के दिल में अपने संतान की
उन्नति एवं उसके विकास हेतु क्या क्या करने की
चाहत होती है, इसकी
कल्पना स्वयं एक पिता ही
कर सकता है, दूसरा कोई नहीं !
यह बात तो सौ फीसदी सच है कि
एक पिता ही वो त्याग और तपस्या कर सकता है, जिसकी
कोई तुलना ही नहीं...!!!
हां, मैंने स्वयं एक बेटी का पिता बनकर ही
उस एहसास को अपने दिल की
धड़कनों में महसूस कर पाया, जिसकी
कोई मिसाल नहीं...!!!
बेशक़ इस दुनिया में पिता का दर्ज़ा
बहुत ऊंचा होता है, जिसकी
ऊंचाई को नापने की हिमाकत कोई
कर नहीं सकता ; यही
हक़ीक़त है!!! इसी
जद्दोजहद में एक साधारण पिता की
आधी ज़िंदगी बीत जाती है कि
किस बेहतर ढंग से वो अपनी बेटी
या अपने बेटे का भविष्य संवार सके...!!!इसी
धुन में एक साधारण पिता रमा रहता है कि
उसे ये एहसास भी नहीं होता है कि
वो वक्त गुज़रने के साथ-साथ अपने अंदर की
दबी ज्वालामुखी को बाहर निकालकर
इस दुनिया की जंग में स्वयं को पूरी
हिम्मत के साथ न्योछावर कर देता है...! यूं ही
कोई पिता बनने का मौक़ा हासिल नहीं
कर सकता...एक पिता का दायित्व निभाने की
ईमानदारी होनी
पड़ती है उस इंसान में, नहीं तो ऐसे ही
कोई अपने संतान के लिए आदर्श नहीं
बन सकता...इसलिए अपनी
सही पहचान बनाएं और इस दुनिया की
हरेक ख़ास चीज़ अपने संतान की
सुख-सुविधा हेतु जुटा पाने की
औक़ात हासिल कीजिए, फिर साबित कीजिए कि
आप एक सफल-समर्थ-सजग पिता हैं...!!!
