क़श्मक़श-ए-ज़िंदगी...
क़श्मक़श-ए-ज़िंदगी...
भगवान जाने ये भागदौड़ कब खत्म हो...
उम्र के इस पायदान पर कदम रखकर
अब मैं थक-सा चुका हूं...!
जीवन के सावन में
न लिए गए कुछ सही फैसलों का
दुष्परिणाम इतने वर्षों से भोग रहा हूं...!
इस अंधाधुंध भागमभाग में
न जाने कितने सही मौके
मैंने गंवा दिए...!
वक्त के थपेड़ों ने मुझे
आज कितना मुफलिस बना दिया,
वो मैं अपनी खाली पड़ती जेबों को
टटोल-टटोल कर
अपनी किस्मत के ताले की
खोई हुई चाबी ढूंढता फिरता हूं...!!!
