जाग, नासमझ जाग...!!!
जाग, नासमझ जाग...!!!
आराम की आदत
मत डाल, ऐ नासमझ!
इतना आराम करोगे, तो
कष्ट का एहसास कैसे होगा...?
और कब तक यूं
एयर कंडीशन और एयर कूलर को
अपना अभिन्न अंग मानकर
बेरोकटोक साथ निभाते जाओगे, ऐ नासमझ ??
अब तो गहरी निद्रा से जाग, ऐ नासमझ,
और खिड़की से बाहर
झांककर देख...
बाहर की दुनिया में अनगिनत लोग हैं,
जो सीने में जलन, आंखों में तूफान लिए
अपनी रोजमर्रा की जद्दोजहद में ही
पीसते जा रहे हैं... !
उन्हें तो 'उफ़' तक करने की मोहलत भी नहीं मिलती...
मगर वह ख़्वाब में भी इतनी आरामदायक ज़िंदगी की
तलाश नहीं किया करते...
वो तो बस रोज़ जीते हैं : रोज़ मरते हैं...
यही उनकी अनसुनी दास्तां है...
यही से उनकी ज़िंदगी का आगाज़ है :
यही पे उसका अंजाम है... !
फिर क्यों झूठी, आरामदायक
ज़िंदगी की
आदत डालते हो, ऐ नासमझ ??
ज़रा तकलीफ तो उठाकर देख...
ज़रा खुद की सहनशक्ति की
आज़माइश तो करके देख,
तभी तो जान पाओगे
कि ज़िंदगी तो पसीने बहाने से ही
निखरती है,
न कि पसीने को ठंडा करने से...
