गांधी-ध्यान...
गांधी-ध्यान...
अपने औकात में जब
रहना सीख जाओगे...
स्वार्थ से परे हटकर जब
कर्तव्य निभाना सीख जाओगे...
अपने सुख को त्यागकर
पर-सुख की साधना में जब
लीन हो जाओगे,
उसी क्षण तुम अपने अंदर
महात्मा गांधी जी को
पुनर्जीवित कर पाओगे,
वरना इस अमूल्य ज़िंदगी में
सिर्फ़ किताबी बातों तक ही
सीमित रह जाओगे...।
अरे, ओ ढीठ ! ज़रा दिल से सोचो...
ज़रा महात्मा गांधी जी के
चरणों में
ईमान से माथा टेककर
उस 'सत्य' को
दिल से उजागर करो,
जिस दौर से गुज़रकर
मोहनदास करमचंद गांधी
"महात्मा" बने...
वो राह
किसी भी सूरत-ए-हाल में
आसान नहीं था...!!!
तुम अपनी अहंकार त्यागकर आत्मशुद्ध मन से
'महात्मा' की महानता का 'अन्वेषण' करो...
उनको पुनर्जीवित करने में
कोई क़सर बाक़ी न रखो...
जी-जान से
गांधी जी से 'आत्मसंपर्क' करो...
उनका ध्यान लगाओ...
उनमें समा जाओ...
उन्हें अनुभव करो...
उन्हें पा जाओ...!
(ध्यान दें : गांधी जी पर 'कटाक्ष' करनेवाले भी होंगे बहुतेरे, मगर
उनके नक्शे क़दम पर चलनेवाले 'सत्यान्वेषी' कुछ गिनेचुने ही मिलेंगे।
इसलिए उनकी निंदा करनेवालों को
खुद भी अपने गिरेबान में झांककर देखने की ज़रूरत है।)
