मेरी फ़कीरी...
मेरी फ़कीरी...
न तो मैं महलों की
झूठे ख़्वाब देखा करता हूँ...
और न ही किसी रईस के
चौखट पे माथा टेका करता हूँ!
मैं तो बस
अपनी फ़कीरी में ही
एक अमीर दिल रखता हूँ...!
हां, मुझे फ़िक्र नहीं
कौन कितना दौलतमंद है
और किसकी ज़िंदगी
कितना रोशन है....!
मैं तो बस अपनी ज़िद पे अड़ा हूँ,...
इसीलिए मैं अपनी फ़कीरी को ही
अपनी पहचान-ओ-वजूद बना डाला हूँ!!
हां, मैं बेशक़ अपनी तौहीन होते
नहीं देख सकता...
न तो कभी किसी
रईस की बेशुमार दौलत-ओ-शोहरत तले
दबके रह सकता...!
यह बात मगर सच है
कि मेरे पिताजी ने मुझे कभी
अपने ग़लत फायदे के लिए
किसी की अमीरी के आगे
किसी भी सूरत-ए-हाल में
न झुकने की तालिम दी है...
और मैं आज तक
अपने पिताजी की कही बातों पर
अमल करता आ रहा हूँ...
और आइंदा भी
अमल करता जाऊंगा...!
यह मेरा खुद से बंदोबस्त है...!
यही वजह है कि मैं
अपनी फ़कीरी को मेरा सलाम देता हूँ...!
बेशक़ मैं अपनी असली मंज़िल की ओर
हर पल अपने एक अलग अंदाज़ से
आगे बढ़ता ही जा रहा हूँ...!
हां, मुझे शिकस्त देने की
सोचिए भी मत,
क्योंकि मैं अपनी जंग
अपने अंदाज़ से
लड़ता जा रहा हूँ...!!!
यह कभी न सोचिए
कि मैंने अपने रास्तों के
खुरदरे पत्थरों के आगे
घुटने टेक दिए...!!!
ये तो मेरे जंग का ऐलान है...!!!
यही मेरे वजूद का आगाज़ है
और यही मेरे रास्तों की
रुकावटों का अंजाम है...!
