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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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चौपाई

चौपाई

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ममता

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माँ की ममता को हम जाने।पर माँ को माँ भी तो माने।।

उनके आँसू पड़ेंगे भारी। नहीं काम की कोई यारी।।


ममता का मत मोल लगाओ। घन घमंड को दूर भगाओ।।

तब जीवन खुशहाल रहेगा।कमी नहीं कुछ कभी रहेगा।।

 

समता ममता सुंदर नाता। नशा नहीं इसका है छाता।।

सबके मन को ये है भाता। दूर रहा जो पास है आता।।


सदमा लगता सबको भारी। नहीं किसी से इसकी यारी।।

अपनी रखना सब तैयारी। हृदय बसाओ कृष्ण मुरारी।।


महाकुंभ महिमा अति न्यारी। भीड़ नित्य आती है भारी।।

चाहे जितनी हो तैयारी। जन समुद्र में लगे फरारी ।।


ममता होती सब पर भारी, चाहे जितनी हो तैयारी।।

माँ की ममता सबको तारी। ममता ही खाती भी गारी।।


आज सोचना हमको होगा। सबने ममता का सुख भोगा।

फिर ममता क्यों अब है रोती। आँख में आँसू फटी है धोती।।


ममता नित अपमानित होती। कर्तव्य साथ ही नित है रोती।।

बच्चे भूखे कभी न सोते। ममता को अपमानित करते।।

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संगत

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सत संगति की महिमा जानो। जन-मन को भी तुम पहचानो।।

जैसी संगत होती भाई।वैसे मिलती सदा भलाई।।


राम नाम की महिमा जानो। कण कण राम बसे तुम मानो।।

जिसकी जैसी संगत होती। वैसे पाता पाथर मोती।।


दंभ नहीं तुमको है करना। ईश्वर से हर पल ही डरना।

प्रगति पंथ आ स्वयं मिलेगा। संकट सारे ईश हरेगा।।


लोभ मोह से हमको बचना।थोड़े में ही है खुश रहना।

नियम धर्म का पावन कहना। खुश रहना अरु प्रभु को जपना।।


आप बड़ों का कहना मानो। उनके अनुभव को पहचानो।

मान सदा तुम उनका रखना। मर्यादा से जीवन जीना।।


अज्ञानी बन कर सीखोगे। तभी ज्ञान का पाठ पढ़ोगे।

दर्पी बनकर नहीं मिलेगा। दंभ आपको स्वयं छलेगा।।

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जलधर

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बहती जल की पावन धारा। सारे जग का जीवन सारा।।

जब- तब इसका चढ़ता पारा। छिन्न भिन्न करता जग सारा।।


सूख रहे जल स्रोते सारे। दुर्दिन के लक्षण ये धारे।।

समय अभी है जागो भाई। सिर्फ नहीं दो आप दुहाई।।


व्यर्थ नहीं जल आप बहाओ। भला आप कल क्यों पछताओ।

अब तो सबको जगना होगा। सही नहीं है जो कल होगा।।


बुद्धिमान अब सब बन जाओ। अगली पीढ़ी आप बचाओ।।


कल तुम पर आरोप लगेगा। शीश आपका स्वयं झुकेगा।

औलादें जब देंगी ताना। छिन्न- भिन्न तब होगा बाना।।


जल ही जीवन सभी जानते। अफसोस यही जो नहीं मानते।

आप सभी रोको बर्बादी। तब ही जीवन की आजादी।।

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शंकर

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शिव शंकर की महिमा न्यारी। कहते सब भोले भंडारी।।

रहते रूप विचित्र बनाए। सब के मन को अति हर्षाए।।


तन भभूति बाघम्बर धारी। शीश चंद्र सोहे अति न्यारी।।

गले नाग की शोभा प्यारी। हस्त बहुत त्रिशूल है भारी।।


डम डम डमरू सुंदर लागे। नेत्र खोल शिव शंकर जागे।।

शिव आराधन करते सारे। कष्ट दूर सब भव से तारे ।।


शिव शंकर हैं बहुत निराले। मस्त मलंग लगे अति प्यारे।।

लोटा भर जल से खुश होते, भाँग धतूरा उनको भाते।।

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नायक

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नायक अब नेता बन जाते। जनता को हैं अति भरमाते।।

जनता इनको ईश्वर माने। भेद भला कब इनका जाने।।


नायक बनना सरल नहीं है। सच मानो यह बड़ा कठिन है।।

सहना कष्ट बड़ा है भारी। सबसे रखना निज की यारी।।


नायक वो ही आज बड़ा है। जो जनमानस साथ खड़ा है।।

स्वार्थ नहीं जिसका निज होता। साथ सभी के हँसता- रोता।।


नायक महिमा बड़ी निराली। बड़े प्रेम से खाये गाली।।

मुँह में राम हाथ में छूरी। रखिए इनसे थोड़ी दूरी।।



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