वसुधा की पुकार
वसुधा की पुकार
कहती वसुंधरा सुन
क्यों मौन हो विधाता
मानव मेरा दुखी है
तुझको नजर न आता
दे रिहाई अब दुख से
लेने दे खुलकर साँसें
बंधन समेट अपने
चुभती बहुत यह फाँसें
खेला नहीं है बचपन
हँसता नहीं बुढ़ापा
छुपता फिरे अब पचपन
पड़ा काल का तमाचा
रोको विनाश अपना
भीषण मचा कोलाहल
शंभू मनुज तड़पते
पी जाओ फिर हलाहल
अज्ञानी बालक यह सब
जतनों से मैंने पाला
डूबी अँधेरे वसुधा
कर दो प्रभु उजाला।
