वस्ल से फिराक़ तक
वस्ल से फिराक़ तक
बेरुख़ी अब बस यही हो क्या
मुझसे मिलकर दुखी हो क्या
मुझ्को आदत हो गयी थी तुम्हारी
तुम अब भी मेरी ही क्या
अब जो मैं नही तुम्हारे पास
तुम पहले सा हँसती हो क्या
मुझसे आकर मिलती है कुछ लड़कियां
तुम अब भी उनसे जलती हो क्या
मेरी आँखें थी वो आईना जिसमे तुम देखती थी खुदको
तुम अब भी मुझको देख कर खुद को सवारती हो क्या
हम कभी न बिछाड़ेंगे ये कहा था तुमने
तुम अब भी झूठें वादे करती हो क्या
अब मेरे तुम्हारे दरमियाँ सिर्फ़ फासले है तो
तुम मेरे बारे में जहर उगलती फिरती हो क्या
अब तो तुम मुझे बुरी सी लगने लगी हो
तुम अब भी मेरे दिल मे रहती हो क्या

