वर्षा
वर्षा
मेघ उमड़-घुमड़ चहूँ ओर से आए
काले -काले हो मतवाले से मंडराये,
गड़गड़ाहट की आवाज़ से आकाश
को गुंजाए।
पर यह क्या बिना बरसे ही चले जाए
इनका तो यह नित्य का क्रम हो गया,
क्यों मौसम हमसे खिन्न हो गया?
जब हमने उनसे यह सवाल किया
उन्होंने भी हँसकर जवाब दिया,
और पेड़ो को कटवाओ
जनसंख्या भी खूब बढ़ाओ,
नए-नए बाँध बनाओ
प्रकृति को हर रोज दुखाओ।
फिर कैसे पर्यावरण में संतुलन होगा
कैसे सब कुछ सामान्य होगा?
अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार
स्वयं तू क्यों रोता है ?
बिना पेड़ो के वर्षा हो
यह कैसे संभव हो सकता है?
अभी भी वक्त है जाग जाओ,
वृक्षारोपण को बढ़ाओ,
वृक्षारोपण को बढ़ाओ।