वृद्धाश्रम
वृद्धाश्रम


हड्डियाँ जर्जर हुई जब,
ढूँढते हैं आशियाना।
क्यों बुढापे में बताओ,
छिन रहा उनका ठिकाना।
चाल क्यों उल्टी चली ये,
घर सिमटते जा रहे हैं
रिश्तों में एहसास सारे
आज घटते जा रहे हैं।
थाम कर उँगली चले जो
सीखे हैं उँगली उठाना
हड्डियाँ जर्जर हुई जब,
ढूँढते हैं आशियाना।
कर रहे हैं सब कहो फिर,
क्या नया तुमने किया है ?
धर्म अपना तुम निभाओ,
जन्म जब तुमने दिया है।
वक्त इतना है नहीं जो
हम सुने किस्सा पुराना
हड्डियाँ जर्जर हुई जब,
ढूँढते हैं आशियाना।
हो गए हैं आप बूढ़े,
सोच भी बूढ़ी हुई है
।
है नया अब दौर आया,
आधुनिक पीढ़ी हुई है।
बोझ कितना काम का है,
आपको अब क्या बताना
हड्डियाँ जर्जर हुई जब,
ढूँढते हैं आशियाना।
क्या इसी दिन के लिए ही
मन्नते हम माँगते थे ?
हर दुआ में बस बुढ़ापे-
का सहारा चाहते थे।
बोझ हैं हम अब उसी पर,
हाय ! क्या आया जमाना
हड्डियाँ जर्जर हुई जब,
ढूँढते हैं आशियाना।
पोता बोला धीरे से,
आप मेरा काम करना।
एक कमरा पास अपने
फिर अभी से ढूंढ रखना।
बाबा-माँ को भी करना
है वहीं पर कल ठिकाना।
हड्डियाँ जर्जर हुई जब,
ढूँढते हैं आशियाना।