वफा और बेवफा
वफा और बेवफा
फर्क है खाली एक अक्षर का।
मगर एक अक्षर के फर्क ने कर दिया अर्थ का अनर्थ है।
सही का गलत है।
जो निभाते शिद्दत से वफा।
अगर उनके साथ कर जाएं उनके अपने ही धोखा
और बन जाए बेवफा।
क्या गुजरती है उन पर बहुत जिंदगियां हो जाती हैं तबाह।
बहुत घर टूट जाते हैं।
और जब बेवफा लोगों को हकीकत का करना पड़ता सामना
तो आसमान से जमीन पर गिर जाते हैं।
और उफ तक नहीं कर पाते हैं।
तब सोचते हैं जो हमने शिद्दत से वफा निभाई होती।
तो हमारी जिंदगी आज इतनी बेकार ना होती।
मगर पछताने से भी कुछ नहीं होता क्योंकि जिससे उन्होंने बेवफाई करी होती है ।
वे अपनी जिंदगी में आगे निकल जाते हैं।
समय के साथ अपने घाव को भरकर जिंदगी में और मेहनत और परिश्रम से ऊपर उठ जाते हैं।
क्योंकि जो ठोकर उनको बेवफाई ने दी होती है।
वे उन को और मजबूत बना जाती है।
जिंदगी अच्छी तरह जीने का सबक दे जाती है।
इसीलिए कहती है विमला
जिंदगी में हमेशा वफा रखो।
जिंदगी ऐसे जियो कि पुरस्कार लगे।
ना जिंदगी में कभी किसी को धोखा दो
ना किसी से धोखा खाओ जो कोई धोखा दे तो कभी उसको माफ भी ना करो।
ना उस पर कभी विश्वास करो।
जो वफा से निभाएंगे जिंदगी।
तो खुशहाल होगी जिंदगी।
जो बेवफा बन जाएंगे
तो बेहाल होगी जिंदगी।