वो..तरसे
वो..तरसे
वो रूह में बसते ही जा रहे थे .
पर हाँ , जिस्म तो दूर हो रहा था ,
तड़प बरक़रार थी मिलने को उनको ,
पर अब मिलने पर भी अलगाव को तरसे,
वो रोये इतना की आँसू को साहिल समझे ,
पर उनके ख्याब भी हंसी को तरसे ,
वो कल के लिए हर जुल्म सह रहे थे ,
पर जिंदगी रह गई आज बनकर ,
उस कल के लिए वो मौत तक तरसे ,
कोई बादल, कोई मौसम, कोई दिन, कोई तो बरसे ,
सैलाब आया भी, सुना रहा आकाश, आँखों से ही समंदर बरसे ,
आँखे, उनकी एक झलक को तरसे ,
वो जिन्दा हैं ,क्यूंकि साँसे ,
एक बार उनसे मिलने को तरसे