वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
असंख्य आँखों के सपने इबादत में हाथ उठाते मांगे
छंटेंगे वैमनस्य के बादल कभी..!
गमगीन रात गुज़रे हौले-हौले
विषैले सपनो को काटती,
हर गम से निजात मिले हे प्रभु,
सुबह की पहली रश्मि लाए उजाला
आरती अज़ानों से उभरती शंखनाद के संग
शहीदों के अपनों की आँखों से बहती नमी
पौंछ दे...!
हो आलम में अमन की गूंज इस पार हो या उस पार शुभ्र सी,
'अचल' ना हिले किसी कोहराम से,
रंग दो शांति को एक ही रंग से,
धवलता में दब जाए हरा, केसरिया, ना उठ पाए कभी..!
गर्दीश में सुला दो हर मन में दबे आक्रोश के
पर्वत में जो धधकते है ज्वालामुखी,
बहा दो भाईचारे की नदीयाँ जो बहती है हर दिल अज़ीज़ सी,
वो सुबह कभी तो आएगी...!