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Prem Bajaj

Romance

4  

Prem Bajaj

Romance

वो रात

वो रात

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उफ़्फ़ कैसे भूला दूँ वो रात, हुस्न था

मेरी बाँहो में जिस रात।

दुल्हन बन कर वो सेज पर थी बैठी,

सेज को महका रही थी वो जिस रात।


फूलों की सेज पे इक कमल का

फूल था खिल रहा जिस रात।

मेरे चाँद के सामने पूनम का चाँद भी

लग रहा था फ़ीका जिस रात।


चाँद के चेहरे से घुँघट का बादल जो हटाया हमने,

प्यार का रँग रूख़सारों पे उतर आया जिस रात।

सरका जो दुपट्टा सर से आ गया था

शर्मो हया का पर्दा जिस रात।


मेहरबानियों से इश्क की परवाना तड़प रहा था 

तो शमाँ भी सँग में जल रही थी जिस रात।

बाँहो में लेकर चुराई जो लबों की लाली,

साँसें भी शोला बन रही थी जिस रात।


पायल को हवाला दिया चुप रहने का,

मगर वो पुरजो़र शोर मचा रही थी जिस रात।

शफ़्फ़ाक बदन सँगेमरमर सा

ताजमहल लग रहा था जिस रात।


कैसे भूला दूँ वो रात, हुस्न जलवे

बिखेर रहा था जिस रात।

इश्क की छुअन से हुस्न का

रोम-रोम सुलग रहा था जिस रात।


इश्क की निगाह भी थी क़ाफिर,

और हुस्न को भी होना था ख़राब जिस रात।

हुस्न को बेहिजाब होना था, इश्क को भी

ज़र्रे से आफ़ताब होना था जिस रात।


थी कयामत की वो रात, इश्क की बाँहो में

हुस्न पिघल रहा था धीरे-धीरे जिस रात।

आती है बार-बार मुझको याद वो रात,

इश्क के आग़ोश मे हुस्न था मदहोश जिस रात। 


कैसे भुलूँ वो रात जमीं

आसमाँ मिल रहे थे जिस रात।

उफ़्फ़ कैसे भूला दूँ वो रात,

हुस्न था मेरी बाँहों में जिस रात।


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