वो मंज़िल कहती रहती है
वो मंज़िल कहती रहती है
वो मंज़िल कहती रहती है,
मैं राहें लिखता रहता हूँ,
वो बस चलने की बात करे,
मैं राहें तकता रहता हूँ।
वो दूजों के ख़ातिर जीती है,
मैं उसके संग जीना चाहता हूँ,
वो भगवान को मानती है,
मैं उसे पूजना चाहता हूँ।
वो बस हंस के चल देती है,
मैं जीता मरता रहता हूँ,
वो मंज़िल कहती रहती है,
मैं राहें लिखता रहता हूँ।
वो समझ चाहती जीवन की,
मैं उसे समझना चाहता हूँ,
वो सबके सुख में हंसती है,
मैं उसके संग हंसना चाहता हूँ।
वो नासमझ सी बनी रहे,
मैं आहें भरता रहता हूँ,
वो मंज़िल कहती रहती है,
मैं राहें लिखता रहता हूँ।
वो क्रांति विचारों वाली है,
मैं प्यार जताना चाहता हूँ,
वो रिश्तों को बंधन कहती,
मैं हाथ थामना चाहता हूँ।
वो हर दिन आगे बढ़ती है,
मैं रुका वहीं रह जाता हूँ,
वो मंज़िल कहती रहती है,
मैं राहें लिखता रहता हूँ।
कितने अलग हैं हम दोनों,
पर उसको पाना चाहता हूँ,
ना जाने क्यों उसके ही संग,
नेह निभाना चाहता हूँ।
वो आगे - आगे चलती है,
मैं उसके पीछे चलता रहता हूँ,
वो मंज़िल कहती रहती है,
मैं राहें लिखता रहता हूँ।