वो मेरे शहर से निकलेंगे
वो मेरे शहर से निकलेंगे
वो मेरे शहर से निकलेंगे तो पूछेंगे
क्या तुम्हारे शहर में भी होती है
वो बारिश
जिसमें भीगे भीगे से अरमान
लेते हैं अंगड़ाई
क्या चलती हैं ऐसी सर्द हवाएँ
जो उड़ा कर गेसुओं को
कांधे से लिपट जाएँ।
वो मेरे शहर से निकलेंगे तो पूछेंगे
क्या तुम्हारे शहर में भी खड़ा है
वो दरख्त
जिसके तले मिलते हैं प्यासे दिल
जिसकी छतों पर हर शाम
बादल और सूरज की आँख मिचौली पर
लगी रहती हैं जमाने की निगाहें।
वो मेरे शहर से गुजरेंगे तो पूछेंगे
क्या तुम्हारे शहर में प्यार करने वालों को
अब भी मिलती है
जुदाई की सजाएँ।
वो मेरे शहर से गुजरेंगे तो पूछेंगे
वो क्यूँ गुजर जाते हैं
बिना दिये सदाएं।

