वो कहती है प्यार है...
वो कहती है प्यार है...
वो कहती है कि प्यार है
मैं नही कहता इकरार है
चेहरा देख मेरा मुस्काती
हम्म्म हम्म्म्म करके जाती
धीमे धीमे से वापस आ
कान मे बुदबुदा भाग जाती
कभी नटखट कभी शैतान
जब होता मैं गंभीर तो
वो मास्टरनी बन समझाती
परेशानी मे भी उम्मीद बन
आशा की किरण जगाती
कभी कभी हम लड़ लेते
तो मुझसे रुठ कर चली जाती
खुद आ फिर मुझको मनाती
सुबह सवेरे उठा प्रभु दर्शन करा
मीठे स्वर मे भजन सुनाती
जी भरकर वो प्यार लुटाती
छोटी छोटी ख़ुशियों को भी साझा कर
हर पल हर दम मुझ पे अपना हक जता
अक्सर वो कहती कि तेरे संग जीवन बिताना है
मुझको अंजान की अंजानी कहलाना है
फिर मैं मुस्काता वो भी मुस्काती
वो कहती प्यार है मैं कहता नही इकरार है.....

