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Bhavna Thaker

Abstract Others

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Bhavna Thaker

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वो जाग उठी

वो जाग उठी

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मूक प्राणों सी निद्रित थी 

अब कनक रश्मियाँ जाग उठी 

तिमिर वात्याचक्र से लिपटी 

कालजयी प्रताड़ना तोड़कर 

हृदय दीप की शिखा जलाकर 

परिधि लाँघकर मोड़ चली 

छीजती वजूद की लौ बांच ली 

कोमल तनांगी खड़ी हुई 

उर तान कर प्रपात शौर्य का

वज्र सी कठोर बन तप्त सूर्य सी 

झंझावात जगा गई।


कमज़ोर पद चिन्ह पोंछती

ज्वाल नयन में भर चली 

स्वयं परछाई को ढूँढती 

करा तोड़ स्त्री तड़ीत बनी 

लाचारी का ध्वंस करते 

बुझे हुए दीपक को जलाती 

चुभते तम सिंधु अपार संग 

युद्ध आगाज़ को मोलती

नारी नव कुन्द कुसुमरज सी 

मेघ पुंज का नूर भरे 

अपने सर पर ख़ुमारी का 

शुभ्र शीत वितान बुने 

कालजयी इतिहास की कटीली 

हर राहों को मोड़ चली।



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