वो दिन
वो दिन
वो लाल रंग उसपे क्या ख़ूब जंचा था
मेंहदी भी हाथों में कमाल ही रचा था
चारों ओर ख़ुशियों से महकता समा था
मगर आँखों में उसके एक दर्द छुपा था
बढ़ रहे थे कदम जिस मंडप की ओर
वहाँ कुंड में उसकी मोहब्बत के आहुति का धुंआ था
दुल्हा भी उसका आज कमाल ही सजा था
मगर वो उसके सपनों का राजकुमार कहाँ था
जिसने कभी उसके साथ चलने का ख़ाब बुना था
वो ये सब देख बस दूर चुपचाप खड़ा था।