वो और मैं
वो और मैं
वो प्यार का सागर है
और मैं उसका किनारा
मैं चाह कर भी उसे छू नहीं सकती!!
वो मेरे नाम के नज़्म सजाए बैठा है
मैं चाह कर भी उसे पढ़ नहीं सकती
वो मुझमें ख़ुद को उलझाए बैठा है
मैं चाह कर भी उसे समझ नहीं सकती
हमेशा डरती थी कहीं मोहब्बत राधा सी ना हो जाए
मगर उस कृष्ण की राधा मैं बन ही नहीं सकती
वो प्यार का सागर है
और मैं उसका किनारा
मैं चाह कर भी उसे छू नहीं सकती!!