वो अपने ही थे
वो अपने ही थे
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वो अपने ही थे
जो हर कदम पर साथ चले,
न जाने किस अभिमान में
हम उनको भूल चले ?
वो दौर भी न जाने कैसा था
जो हम खुद को भूल चले,
राह में यूँ मतवाले हुए
कि हौस भी न लेकर चले।
ठोकर लगी तो गिर पड़े
फिर दर्द लेकर गली से चले,
ख्वाब जो टूटा
कि सच के दीवान साथ चले।
जिंदगी से दूर बहुत दूर
अपनों से छिपकर चले,
खुद से ही शर्मसार
मयखाने की राह चले।
पर वो अपने ही थे
जो ढूंढ़कर हमको
नई जिंदगी के पास लेकर चले,
अब यह देख हम भी
अपनों के सानिध्य में
जीने का प्रण लेकर चले।