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Navneet Gupta

Drama Inspirational Thriller

4  

Navneet Gupta

Drama Inspirational Thriller

वो 70 घंटे

वो 70 घंटे

1 min
252


अलख सुबह जब दुनिया को उगता सूरज दिखे

उन्हें मलबे में बन्द गुफा का ढाई किलोमीटर ॥


दुनिया दीवाली की रोशनी में मस्त

वो 41 अन्धियारा कोख में॥

यूँ तो हम प्रत्येक रहा होता है,

पर इस उम्र में जब बाहर रिश्तों का परिचित

संसार है॥


बस अंधेरा था 

रिसता पानी था

साथ में रखा चिवड़ा था

अनिश्चितता का कोहरा था॥

ज़िन्दा हैं बाहर सम्भावित को बताना भी था।

निकलने के अपने यत्न भी करने थे

गब्बर और सबा को 

सब दूसरों का सम्भालना भी था॥


बस वो थे क्षण

एक अनिश्चित यात्रा

काल खंड की 

स्थान रूका था॥


एक आस जगी

जब कुछ आवाज़ें 

एक पाईप से कंपित सी मिली

कानों को, उस अंधेरे में॥

72 घंटे कब गुजर गये

बुरा, उससे बुरा जोड़ते घटाते॥

एक आस जागी॥


आस के साथ भी

तैरते डूबते ख़यालों में

फिर भी 17 दिन कुल निकल गये

लेकिन इस बार उम्मीद पूरी थी

कि वो उस पार

पहाड़ उठा कर

उनके पहाड़ को तोड़कर

उन्हें वापस सूरज दिखायेंगे॥

दीवाली उन की मनेगी॥


ये जीत थी

दोनों पक्षों के

नेतृत्व की॥

गब्बर ने सँभाला बंधकों को

 भारत ने सँभाला खनन को॥


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