वंदना
वंदना
हे दीनों के नाथ
पालनहार तुम्हीं हो उनके।
शीत,ग्रीष्म, वर्षा में
घनघोर अंधेरे में
भीतर व बाहर के तम से
त्राण दिलाओ
हे ! परमेश्वर
न कोई हो भूखा - नंगा
घोर दरिद्रता का जीवन
कोई क्यों जिए ?
हे ईश्वर !
दो सबको आस व साहस
काट हर बंधन को
सब सुख पाएं, इस जीवन में।
