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Satyendra Gupta

Tragedy

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Satyendra Gupta

Tragedy

वक्त

वक्त

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वक्त जो गुजर जाए लौट कर आता नही

उस गुजरे वक्त में अपने जब रूठ जाए 

और हम भी रूठ कर उसे मनाए नही

हम तो कोशिश है करते मनाने की

वो रूठा हुआ यार क्यू समझ पाता नही

वक्त जो गुजर जाए लौट कर आता नही।


नही पता थोड़ी सी बात पे रूठ जाती है क्यू

मनाने पे भी  उसे समझ में आती है क्यू नही

समझ में उसे तब आता है जब दूर हो जाता हु

 नजदीक होता हु तब समझ में उसे आता क्यू नही

उसे भी ये बात समझ में आनी चाहिए की

वक्त जो गुजर जाए लौट कर आता नही।


तकलीफ तब होती है जब अपने ही नासमझ हो जाए

बात जब जीवन संगिनी की हो और वो रूठ जाए

किसके वास्ते हु कमाता और मेहनत करता हु

ऐसा नहीं की वो समझती नही , तब ऐसा क्यू करती है

दूर हो जाने पे क्यू करती है अहसास अपनी गलती का

उसे भी है पता अब मिलन होगा कुछ वक्त के बाद सही

वक्त जो गुजर जाए वो लौट कर आता नही।


हमारे एहसास को कोई भी नही समझता

फिर भी हम परिवार के लिए करते है मेहनत

दुनियादारी के चक्कर में उठाते है आफत

हर वो अधिकार देते है जो उन्हे चाहिए

फिर भी हमारे एहसास को क्यू समझता नही

वक्त जो गुजर जाए वो लौट कर आता नही।


कहते है जीवन के दो पहिया है पति पत्नी

पत्नी कहलाती है जीवन संगिनी

फिर पति के हर एहसास को समझ पाती क्यू नही

आराम छोड़कर निकलता हु आराम कमाने के लिए

उन्हें कोई परेशानी न हो, सारे दिक्कतों झेलता हु

मेरी परेशानी को कोई समझ पाता क्यू नही

वक्त जो गुजर जाए वो लौट कर आता नही।


पति रोता भी है मगर दिखाता नही

अपने मजबूरी का जख्म दिखाता नही

लाख हो कष्ट खुद झेलता पर चेहरे पे उदासी लाता नही

पैसा कमाना इतना आसान है क्या 

फिर भी हर दर्द को झेलता , उनका रूठना जाता नही

वक्त जो गुजर जाए वो लौट कर आता नही।


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