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वक्त से वो लड़ी दिखती है

वक्त से वो लड़ी दिखती है

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वक्त से भी वो लड़ी दिखती है

एक कोने में खड़ी दिखती है


हो चुकी है वो इतनी दुबली अब

कोई पतली सी छड़ी दिखती है


फ़िक्र की हैं लकीरें अब माथे पर

दिल में बेचैन बड़ी दिखती है


टाट की हैं दीवारें बिन छप्पर

कैसी मुश्किल की घड़ी दिखती है


शहर तूफ़ान की ज़द में आया है

क्या मुसीबत की झड़ी दिखती है


सब ख़ुदा के हवाले करता हूँ

वो तो बेख़ौफ़ अड़ी दिखती है


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